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देश ऐसे ही नहीं बदल जायेगा
रोबर्ट फ्रॉस्ट ने एक जगह लिखा था कि अक्सर जिंदगी हमें ऐसे मोड़ पर लाकर खड़ा कर देती है जहाँ पर हमें किसी एक रास्ते को चुनना पड़ता है क्योंकि दोनों रास्तों पर एक साथ नहीं चला जा सकता है। ठीक वैसे ही प्रधानमंत्रीजी के फैसले ने देशवासियों को एक ऐसे ही मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया है जहाँ हमें तय करना होगा कि हम कैसा भारत चाहते हैं,भ्रष्टाचार मुक्त,कालेधन मुक्त या जैसा है वैसा ही।बेशक हमें इस ऐतिहासिक फैसले पर अपना सहयोग देना चाहिये यदि नहीं दे सकते तो फिर हमें ये चीखने चिल्लाने का कोई अधिकार नहीं है कि देश में बड़ी अव्यवस्था है, भ्रष्टाचार है,कालाधन है,कोई कुछ क्यों नहीं कर रहा है क्योंकि ये सब हमारी मदद के बिना मुमकिन नहीं है। किसी भी देश में बदलाव उसके नागरिकों के सहयोग के बिना नहीं लाया जा सकता है। अधिकारों के लिए तो हम लड़ना जानते है,किसी भी तकलीफ में हमें अधिकार याद आते हैं लेकिन जब बात कर्तव्यों की होती है तो पीछे हट जाते हैं।हम देश तो बदलना चाहते है मगर इस प्रिक्रिया में हमें कोई परेशानी न हो।यदि उस बदलाव से हमारे आराम में खलल पड़ता है तो हम उसकी आलोचना करने लगते हैं। तमाम न्यूज़ चैनलों पर बैंको की कतार में लगे लोगों को दिखाया जा रहा है ,कोई शादी को लेकर,कोई अपनी जरूरतों को लेकर हो रही परेशानी के कारण सरकार को कोस रहा है,तर्क वितर्क कर रहा है।निसंदेह जिनके घर शादी है वे परेशान हैं लेकिन क्या दोनों पक्ष मिलकर सादगीपूर्ण तरीके से विवाह करने का संदेश नहीं दे सकते हैं।शायद हमारी जरूरतों ने हमें इतना बेबस व् लाचार बना दिया है कि हम देश हित से जुड़े इस फैसले में सहयोग नहीं दे पा रहे हैं।जरा सोचिये आजादी की लड़ाई में महात्मा गाँधी ने देशवासियों से सरकार का असहयोग करने की अपील की थी यदि उस समय इतना तर्क वितर्क होता तो शायद ये आजादी भी न होती। सरकार के इस फैसले में साथ दीजिये,पर्याप्त समय दें फिर यदि यह फैसला आपकी उम्मीदों पर खरा नहीं उतरता है तो आपको आजादी होगी कि आप दिलखोलकर आलोचना करें वरना मुक्तिबोध की ये पंक्तियां जीवनभर आपको बैचैन करती रहेंगी – ओ मेरे आदर्शवादी मन,ओ मेरे सिद्धान्तवादी मन, अब तक क्या किया? जीवन क्या जिया? बताओ तो किस किस के लिए तुम दौड़ गए, करुणा के दृश्यों से हाय! मुंह मोड़ गए, बन गए पत्थर, बहुत बहुत ज्यादा लिया ,दिया बहुत बहुत कम, मर गया देश अरे जीवित रह गए तुम ।
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