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अध्यापकों के चेहरों पर याचना का विम्ब

Idhar udhar ki
Idhar udhar ki
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शिक्षक दिवस पर होने वाले समारोहों में हम शिक्षको के सम्मान में कसीदे पढ़कर,उन्हें देवताओं का दर्जा देते हुए,प्रायः उन वजहों को नजरअंदाज कर देते हैं,जो इन शिक्षकों को बार बार आंदोलनों के लिए बाध्य करती हैं,जो इन्हें हाथ में चाक डस्टर किताब की जगह आंदोलन की तख्तियां लेकर सड़क पर उतरने के लिए खींचती हैं।
मध्यप्रदेश की शिक्षा व्यवस्था का यह एक स्याह पहलू है,जो अब एक नासूर बन चुका है,जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता है।
प्रदेश में शिक्षको का एक वर्ग जिसे अध्यापक कहा जाता है(पंचायती राज अधिनियम के कारण उसे शियक्षक नहीं कहा जाता) पिछले 17 वर्षों से आंदोलन कर रहा है।
ये लड़ाई है एक शिक्षक का दर्जा पाने की और अन्य कर्मचारियों की तरह मूलभूत सुविधाओं की,इन सबको पाने की जद्दोजहद में इन्होंने इतने ज्ञापन व् आंदोलन किये हैं यदि इन सब आंकड़ों को एकत्रित किया जाये तो एक रिकॉर्ड बन जायेगा।अपने हाथों में याचिकाएं लिए हर तिमाही छमाही हुक्मरानों के चक्कर काटते काटते इनके चेहरों पर एक याचना का विम्ब स्पष्ट दिखाई देने लगा है,हल ये है कि इनमें से कुछ तो ऐसे हैं जो खाली हाथ सेवानिवृत्त हो चुके है,और कुछ इसकी कगार पर हैं।
वहीँ दूसरी ओर सरकार का तर्क ये है कि संविधान के 73व् 74वें संशोधन द्वारा शिक्षा को स्थानीय निकायों के अधीन किया गया है,अतः ये स्थानीय निकाय के कर्मचारी हैं,इन्हें पूर्व से कार्यरत नियमित शिक्षको के समान सुविधाएँ वेतन भत्ते नहीं दिए जा सकते हैं,मगर सवाल ये उठता है कि क्या कोई अधिनियम या कानून किसी भी संस्थान में कार्यरत कर्मचारियों को सुविधाएं देने से रोक सकता है?क्या इतने वर्षों से शिक्षकीय कार्य कर रहे इस वर्ग को शिक्षक का दर्जा देकर उन्हें शिक्षकों के सामान वेतन भत्ते देने पर पाबन्दी लगा सकता है?अगर नहीं तो फिर क्यों इस गतिरोध को दूर करने की जहमत अभी तक सरकार द्वारा उठाई नहीं जा रही है।इसका परिणाम मासूम बच्चों को भुगतना पड़ रहा है क्योंकि प्रदेश की शिक्षण व्यवस्था का दारोमदार इन्ही अध्यापकों के कंधों पर। सरकार को आगे आकर इनकी समस्याओं का ठोस हल निकालना होगा।
चलते चलते रसियन साहित्यकार इसाक असिमोव की एक विज्ञानं परिकल्पना,परिदृश्य 2155,जिसमें एक छोटी बच्ची को जब पता चलता है कि पहले बच्चों को पढ़ाने वाला शिक्षक एक इंसान होता है तो उसे बड़ा अचरज होता है क्योंकि वह ये मानने के लिए कतई तैयार नहीं होती है कि एक इंसान ,शिक्षक जितना ज्ञानी भी हो सकता है क्योंकि उसका शिक्षक यांत्रिक मानव(रोबोट) है और स्कूल एक कंप्यूटर डिवाइस।
ये किस्सा इसलिये की शासन ने भी असिमोव की परिकल्पना की तरह शिक्षकों को यांत्रिक मानव मान लिया है तभी तो उन्हें अध्यापन के अतिरिक्त हर मोर्चे पर अपनाया जाता है;छात्रवृत्ति,जाति प्रमाण पत्र,चाइल्ड मैपिंग,साइकिल,मध्यान्ह भोजन,मतदाता सूची,जनगणना, पशुगणना और भी न जाने कितने काम है जो इन्हें कंप्यूटर के इर्द गिर्द घूमती ऑनलाइन व्यवस्था को लेकर यांत्रिक मानव की तरह करने पड़ते हैं।
बहरहाल इन सब के बीच शून्य में ताकते मासूम बच्चे,गिड़गिड़ाते अध्यापक,कराहती शिक्षा व्यवस्था ही दिखाई देती है।

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